प्रभु जोशी: मां वीणा पाणि सरस्वती के वरद पुत्र की  तृतीय पुण्य तिथि 4 मई पर भावभीनी श्रद्धांजलि

Spread the love

प्रभु जोशी: मां वीणा पाणि सरस्वती के वरद पुत्र की  तृतीय पुण्य तिथि 4 मई पर भावभीनी श्रद्धांजलि
(डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास)

ज्ञान के हिमालय एवम बचपन के मित्र प्रभु जोशी: 4 मई दिवंगत दिवस पर अमिट यादें प्रस्तुत कर रहे उनके बचपन के अभिन्न मित्र एवम शिक्षाविद
जय शंकर प्रसाद ने अपनी कालजयी रचना कामायनी में निम्न पंक्तियां प्रभु जोशी जैसे धरती के बिरले मानवो के लिए ही लिखीं हैं।
औरों को हंसते देखो मनु, हंसो और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।
भारतीय संस्कृति के अनुरूप  प्रभु जी को मैं इस उच्च सुभाषित अनुरूप ही महामानव समझता हूं।
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम् ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ६, मंत्र ७१)
यह मेरा अपना है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त (सञ्कुचित मन) वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है। प्रभु जोशी उदार चरितमना थे। आपने अपना सम्पूर्ण जीवन परहित में ही जिया।

ज्ञान के अंतरराष्ट्रीय क्षितिज, प्रकांड साहित्यकार व चित्रकार ‘छोटी काशी’ पीपलरावां (देवास) के मां शारदा वीणापाणि सरस्वती के वरद पुत्र प्रभु जोशी को ब्रह्मलीन हुए तीन वर्ष पूर्ण हो चुके हैं । 4 मई 2021 को  उन्हें  कोरोना ने हमसे छीन लिया और उनका भौतिक शरीर पंचभूत में विलीन हो गए। आपने ‘छोटी काशी’ के रूप में प्रसिद्ध पीपलरावां जिला देवास गांव में जन्म 12 दिसंबर 1950 में जन्म लिया और प्रारंभिक शिक्षा पीपलरवा  (देवास) में पाई। माध्यमिक विद्यालय में 1950 के दशक में अध्ययन किया। उच्च उदात्त मानवीव गुणों के पुरोधा आपके पिता एक आदर्श शिक्षक  माखनलाल जोशी ने प्राथमिक विद्यालय हमारा किया ।प्रभु जोशी ने जीव विज्ञान में स्नातक तथा रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर के उपरांत अग्रेजी साहित्य में भी एम ए प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया।
पहली कहानी 1973 में धर्मयुग में प्रकाशित हुई। ‘किस हाथ से’, ‘प्रभु जोशी की लंबी कहानियाँ’ तथा उत्तम पुरुष’ कथा संग्रह भी प्रकाशित हुए। नई दुनिया के संपादकीय तथा फ़ीचर पृष्ठों का पाँच वर्ष तक संपादन किया। पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी तथा अंग्रेज़ी में कहानियों, लेखों का प्रकाशन भी हुआ। चित्रकारी बचपन से प्रिय थी। जलरंग में विशेष रुचि रही और जलरंग की राष्ट्रीय एवम अंतरराष्ट्रीय स्तर की एग्जीबिशन लगाकर विश्व जलरंग प्रेमियों को आकर्षित भी किया।
छोटे से गांव से विद्या अध्ययन कर लेखन और चित्रकार के रूप में अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित की। साप्ताहिक धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी और नवनीत में अपनी कलम से अंतरराष्ट्रीय जगत को ठेठ गांव की जमीनी हकीकत को निरूपित करने वाले अप्रतिम साहित्यकार, चित्रकार, कवि, लेखक, चिंतक, विचारक रहे।
लिंसिस्टोन तथा हरबर्ट में आस्ट्रेलिया के त्रिनाले में चित्र प्रदर्शित हुई। गैलरी फॉर केलिफोर्निया (यू॰एस॰ए॰) का जलरंग हेतु थामस मोरान अवार्ड मिला। ट्वेंटी फर्स्ट सेन्चरी गैलरी, न्यूयार्क के टॉप सेवैंटी में शामिल हुए। भारत भवन का चित्रकला तथा म. प्र. साहित्य परिषद का कथा-कहानी के लिए अखिल भारतीय सम्मान मिला। साहित्य के लिए म. प्र. संस्कृति विभाग द्वारा गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप प्रदान की गई।
बर्लिन में संपन्न जनसंचार के अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में आफ्टर आल हाऊ लांग रेडियो कार्यक्रम को जूरी का विशेष पुरस्कार मिला। धूमिल, मुक्तिबोध, सल्वाडोर डाली, पिकासो, कुमार गंधर्व तथा उस्ताद अमीर खाँ पर केंद्रित रेडियो कार्यक्रमों को आकाशवाणी के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। ‘इम्पैक्ट ऑफ इलेक्ट्रानिक मीडिया ऑन ट्रायबल सोसायटी’ विषय पर किए गए अध्ययन को ‘आडियंस रिसर्च विंग’ का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
प्रभु जोशी एक देवदूत थे। दया, करुणा, प्रेम, अहिंसा, प्रसन्नता, कृतज्ञता कृतज्ञता और परोपकार उनके जीवन के उच्च, उदात्त गुण थे। जिव्हाग्र पर सरस्वती का वास था। वे अद्भुत दैदीप्यमान औजस्वी वाणी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे। जब भी सभा में अपनी अभिव्यक्ति देते थे । 2010 में आपने शासकीय महाराजा भोज स्नातकोत्तर महाविद्यालय में  डॉ. तेजप्रकाश व्यास के प्राचार्यत्व काल में प्राध्यापकों और विद्यार्थियों को प्रेरक व्याख्यान दिया था। उस समय आपका और धर्मपत्नि श्रीमती अनिता जोशी का महाविद्यालय की ओर से सारस्वत सम्मान भी किया गया था। डॉ. व्यास पीपलरावां से ही प्रभु जोशी के बचपन से आजीवन मित्र रहे।
प्रभु आकाशवाणी इंदौर से सेवानिवृत्त हुए थे।
ख्यात चित्रकार एवं कथाकार प्रभु जोशी के दो चित्रों को अमेरिका एवं अन्य चार राष्ट्रों द्वारा संचालित ‘बेस्ट इंटरनेशनल आर्ट गैलरी’ का विशेष पुरस्कार दिया गया है। तैलरंग में उनके चित्र ‘स्माइल ऑफ चाइल्ड मोनालिसा को पुरस्कृत किया गया है। जलरंग में उनके बनाए एक लैंडस्केप चित्र को भी पुरस्कृत किया गया है। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार पॉवेल ग्लादकोव ने उन्हें मौलिक और विशिष्ट चित्रकार बताया है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध जलरंग चित्रकार टेऊ वोर लिंगगार्ड ने उनके बारे में कहा कि ‘मैं हैरान हूं कि आप अपने चित्रों में ऐसा ‘अनलभ्य’ प्रभाव कैसे पैदा किया हैं। इस मौके पर उनके द्वारा वेबदुनिया से दुरभाष पर विशेष वार्ता की अप्रतिम झलक देखियेगा ।
माहीमीत- आपने चित्रकारी कब शुरू की थी। पहला चित्र कौन सा बनाया था।

प्रभु जोशी – आठ साल की उम्र में रंगों के साथ मैंने खेलना सीखा था। महाभारत के एक दृश्य जिसमें द्रौपदी को छेड़े जाने पर कीचक की भीम द्वारा धुनाई की जा रही थी, को मैंने उकेरा था। यह दृश्य मेरे मानस पटल में तब आया था जब गांव का एक शातिर लड़का मेरी बहन को सीटी बजाकर तंग कर रहा था। वास्तव में देखा जाए तो सच्चा कलाकार वही होता है जो अपने आसपास घटनाओं को अपनी रचना के जरिए लोगों के सामने लेकर आए।
मेरा यह चित्र पीपलरावां स्थित घर की दीवार पर करीब दो साल तक टंगा रहा। इसके बाद तो जैसे चित्रकारी मेरे दिलों दिमाग में बैठ गई। यही कारण था कि दीवाली पर तरह-तरह के चित्र मैं दीवारों पर बनाता था। इनमें बैल, बकरी, गाय और शेर सहित कई जानवर शामिल होते थे।
माहीमीत- गीतकार गुलजार ने आपके चित्रों के संबंध में प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि आपके सांस लेते पोट्रेट रूह के लैंडस्केप्स है। इसका क्या मतलब है ?
प्रभु जोशी – दरअसल यह गुलजार साहब का शायराना अंदाज था। उनका कहना था कि आपके चित्र बहुत जीवंत है। यही कारण है वह देखने वाले की रूह में बस जाते है। यही यथार्थवादी चित्रकारी का नमूना भर है।
माहीमीत- देखा गया है कि आप समीक्षकों की राय से सहमत नहीं रहते। आपको सम्मान मिला है, विरोधी आलोचकों को क्या कहेंगे?
प्रभु जोशी – चिढ़ की कोई बात ही नहीं है। मुझे ऐसे समीक्षकों की राय समझ नहीं आती है, जो किसी रचना की साहित्यिक भाषा में अत्यधिक व्याख्या कर देते हैं। इससे कला का तो नुकसान है ही बल्कि उन लोगों के साथ भी धोखा है जो समीक्षकों की राय के आधार पर किसी रचना के प्रति आकर्षित होते हैं।
माहीमीत- प्रीतीश नंदी ने आपको जलरंग का सम्राट बताया है। उनकी इस बात पर आप कितना खरा उतरते हैं ?
प्रभु जोशी – देखिए नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार ग्रेब्रिएल गार्सिया माक्र्वेज ने साहित्य के संदर्भ में कहा था कि -एक हाथी आसमान में उड़ रहा था और हजारों हाथी आसमान में उड़ रहे थे। पहला वाक्य तेलरंग और दूसरा वाक्य जलरंग पर लागू होता है। इसी सोच के साथ मैंने जलरंग पर अपना फोकस अधिक किया। ऐसे में यदि इसको सम्मान मिलता है तो यह मेरे लिए क्या हर कलाकार के लिए अच्छी बात होगी। मेरा पुरस्कार हर कलाकार का सम्मान है।
माहीमीत- आपके चित्रों से आदमी गायब है। महज जगहें मौजूद है। इसकी कोई खास वजह ?

प्रभु जोशी – बरसों पहले जब मैं अपना घर छोड़कर देवास आ गया तो सालों तक मैं घर नहीं गया। मैं यही सोचता था कि कुछ करके और कुछ बनके ही घर जाउंगा। मैं अपनी जिद पर अडिग तो था लेकिन मुझे घर, गलियों, रास्तों और लोगों की याद बहुत आती थी। बावजूद मैं घर नहीं गया। मुझे उन सब की याद रह-रहकर आती थी। यही कारण है कि जब मैं चित्र बनाने लगा तो वह सब जगह तो दिखाई दी लेकिन उनसे आदमी हमेशा नदारद रहा।
(लेखक स्व. प्रभु जोशी के बचपन के मित्र हैं।)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top