मेरा शहर मेरा स्वाभिमान-क्यों न गर्व किया जाये
( मोहन वर्मा-देवास ) अगर कहा जाये कि हमें गर्व है कि हम मालवावासी है और उसमें भी खासकर देवास के निवासी है तो पूछा जा सकता है कि मालवा और खासकर देवास में ऐसी क्या खास बात है कि व्यक्ति मालवा और देवास का बाशिंदा होने पर गर्व करे। मालवा में एक कहावत सुनते सुनते हम बड़े हुए कि “मालव माटी ऐसी बीर, पग पग रोटी डग डग नीर” यानि मालवा की मिट्टी ऐसी है कि यहां कदम कदम पर रोटी पानी उपलब्ध है। यहां की आबो हवा के बारे मे ये भी कहा जाता है कि सुबहो अवध और शबे मालवा..तो मालवी मनक गर्व क्यों न करे?
अब बात अपनी मिट्टी अपने शहर की, जिसपर गर्व भी किया जा सकता है और कहें कि यह हमारे लिए अभिमान की बात है कि हम यहां के बाशिंदे हैं तो कुछ गलत नहीँ होगा।मां चामुण्डा और मां तुलजा भवानी की पहाडी के ठीक नीचे बसे देवास मे देशभर के लाखों श्रद्धालु पूरे साल अपनी मुरादें लेकर आते है और मां उन्हें पूरा भी करती है। इस टेकरी का अपना इतिहास है।
अब ये मालवा की आबो हवा और देवास की माटी का
ही कमाल है कि मूर्धन्य शास्त्रीय गायक पंडित कुमार गंधर्व को तपेदिक जैसी गम्भीर बीमारी के चलते कर्नाटक के डाक्टर्स ने आबोहवा बदली के लिए मालवा में और खासकर देवास में बसने का सुझाव दिया था और दुनिया जानती है कि वे यहां रहकर न सिर्फ़ ठीक हो गए बल्कि इसके बाद तो कुमार जी ने अपनी दूसरी पारी में अपना सर्वोत्कृष्ट गायन भी दिया और अपनी उपलब्धियों से शहर को एक खास पहचान भी दी।
कुमार जी के बाद उनकी अगली पीढ़ी के होनहार गायक उनकी सुपुत्री और सुशिष्या कलापिनी कोमकली को देश के संगीत कला अकादमी के सर्वोच्च सम्मान से राष्ट्रपति जी ने अभी अभी सम्मानित किया है। वे और कुमारजी के सुपौत्र भुवनेश भी देशभर में अपने गायन से संगीतप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर रहे है।
देवास का बाशिंदा होने पर गर्व क्यों न किया जाये कि देश की स्वर कोकिला लता मंगेशकर के संगीत गुरू रजबअली खां सहाब और अमानतअली खा साहब इसी शहर के बाशिंदे रहे है। नसतरंग जैसी कठिन वाद्य को देशभर में पहचान देने वाले कलाकार भी इसी शहर के गौरव थे।
चित्रकला की बात करें तो ख्यात चित्रकार अफजल हों यों साहित्य के साथ चित्रकला में विश्व में भी अपनी कुची का जादू बिखरने वाले प्रभु जोशी भी देवास के निवासी थे। प्रभु जोशी की कहानियां जब धर्मयुग और सारिका जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित होती थी तब ख्यात लेखक गुलजार और कमलेश्वर उन्हें ढूंढते हुए देवास आए थे। साहित्य की ही बात करे तो नवगीतकार नईम,उपन्यासकार प्रकाश कांत कहानी लेखक जीवन सिंह ठाकुर से भी देवास की एक विशिष्ठ पहचान है।
देशभर में मंचों से अपनी ओजस्वी कविता का पाठ करने वाले शशिकांत यादव हों या फिल्मी दुनिया में अपने अभिनय के अलग अलग रंग बिखरने वाले चेतन पंडित हो इन सबने देवास को एक पहचान दी है । सुविख्यात कथक गुरु प्रताप पवार जो आज विश्व भर में अपनी नृत्य शैली कथक के शो करते है वे भी देवास का ही नाम रोशन कर रहे है,और इसी कड़ी में उनके सुशिष्य प्रफुल्ल गहलोत भी शहर के बच्चों को कथक में पारंगत करने के साथ देशभर में अपने कार्यक्रमों से लोगों को प्रफुल्लित कर रहे है।
एक समय के अदने से कस्बे और उससे भी पहले गांव देवास में दो दो रियासत और दो दो राजा होने के किस्से अब तक लोगों की जुबान पर है कि कैसे एक सड़क पार करके लोग दूसरे राज्य में पनाह ले लेते थे। छोटे से कस्बे से बड़े शहर में बदलते देवास ने समय के कई रंग देखे है। अगर कहें कि बीते सालों में देवास की शक्लों सूरत ही बदल गई है तो गलत नहीँ होगा।
विकास की राह चलते कस्बे से नगर और नगर से बड़े नगर मे बदलते देवास को अभी और भी बहुत कुछ चाहिये मसलन इंदौर उज्जैन से मेट्रो कनेक्शन, पड़ोसी शहरों के लिए बेहतर यातायात,बस सुविधा, अच्छे अस्पताल,मेडिकल,इंजीनियरिंग कालेज और एक सर्वसुविधायुक्त ऑडिटोरियम…
इन सबसे अलग बात करें तो शहर की तासीर, अपनापन, अब भी वही है। संगीत,साहित्य,कला और संस्कृति के इस शहर का बाशिंदा होने पर कोई गर्व क्यों न करे, ये शहर,इसकी विरासत हमारा अभिमान भी है और स्वाभिमान भी ।।